इस्लामाबाद। अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ कार्रवाई करके पाकिस्तान ने खुद को बड़ी मुश्किल में डाल लिया है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने अब पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के अगवा अधिकारियों की रिहाई के बदले तीन बड़ी शर्तें रखी हैं। इन शर्तों को लेकर पाकिस्तान के प्रशासन और सेना में मतभेद उभर आए हैं। टीटीपी पर भी रिहाई के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है क्योंकि इस मामले में अब स्थानीय जिरगा (प्रभावशाली लोगों के समूह) भी शामिल हो गए हैं। जिरगा की कोशिश है कि बातचीत से समाधान निकाला जाए। पाकिस्तान सरकार और फौज के सामने यह स्थिति गंभीर संकट बनकर खड़ी है। यदि समय रहते सही फैसला नहीं लिया गया तो इससे देश की सुरक्षा और स्थिरता पर गंभीर असर पड़ सकता है।
टीटीपी की पहली मांग है कि उनके परिवार के सदस्य, जिनमें महिलाएं, बच्चे और रिश्तेदार शामिल हैं, जिन्हें पाकिस्तान सरकार ने हिरासत में लिया है या जो लापता हैं, उन्हें तुरंत रिहा किया जाए। दूसरी मांग है कि लक्की मरवत से गिरफ्तार किए गए आतंकवादियों को रिहा किया जाए। तीसरी मांग में टीटीपी ने उन आतंकवादियों के परिवारों को मुआवजा देने और भविष्य में उनके घरों को नुकसान न पहुंचाने की गारंटी मांगी है, जिनके घर सैन्य अभियानों के दौरान तोड़े गए थे। इसके अलावा, मुठभेड़ों में मारे गए आतंकवादियों के शव भी उनके परिवारों को लौटाने की मांग की गई है। पाकिस्तान प्रशासन और सेना इन मांगों पर दो धड़ों में बंट गए हैं। एक धड़ा मानता है कि टीटीपी की कुछ मांगें स्वीकार कर ली जाएं ताकि परमाणु ऊर्जा अधिकारियों को सुरक्षित रिहा कराया जा सके। उनका कहना है कि अगर देरी हुई तो अगवा किए गए अधिकारी तालिबान को संवेदनशील जानकारी दे सकते हैं, जिससे देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है। वहीं, दूसरा धड़ा मानता है कि टीटीपी के खिलाफ सैन्य अभियान को और तेज किया जाए ताकि दबाव में आकर वे अधिकारियों को छोड़ने को मजबूर हो जाएं। इस बीच, अधिकारियों के परिजन सरकार पर दबाव बना रहे हैं, जबकि खुफिया एजेंसियों को चिंता है कि कहीं ये अधिकारी अति संवेदनशील जानकारियां टीटीपी तक न पहुंचा दें।
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