मध्य प्रदेश कृषि में अव्वल: टमाटर में पहला, मटर में दूसरा स्थान; दुग्ध उत्पादन 20% बढ़ाने का लक्ष्य
कृषि में मध्य प्रदेश का दबदबा: टमाटर और मटर में शीर्ष, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की योजना
मध्य प्रदेश ने बनाई अलग पहचान: टमाटर व मटर उत्पादन में शानदार प्रदर्शन, दुग्ध उत्पादन में 20% बढ़ोतरी का लक्ष्य
भोपाल
कृषि के क्षेत्र में मध्य प्रदेश की देशभर में अलग पहचान है। लगातार सात कृषि कर्मण अवार्ड जीतने वाला न केवल यह पहला राज्य है, बल्कि कोरोना महामारी के समय रिकॉर्ड 128 लाख टन गेहूं का उपार्जन करके पंजाब को भी पीछे छोड़ चुका है। टमाटर में पहला और मटर के उत्पादन में मप्र का देश में दूसरा स्थान है, तो दालों के उत्पादन में प्रथम स्थान, खाद्यान्न में द्वितीय और तिलहन उत्पादन में तृतीय स्थान पर है। अब किसानों की आय बढ़ाने के लिए पशुपालन से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
उद्यानिकी फसलों में देखें, तो मध्य प्रदेश टमाटर और मटर उत्पादन में लगातार प्रगति कर रहा है। टमाटर के बीज पर 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। 2024-25 में 1,27,740 हेक्टेयर में टमाटर की खेती की गई, जिससे 36 लाख 94 हजार 702 टन उत्पादन हुआ। यही स्थिति मटर को लेकर भी है। अन्य प्रमुख उद्यानिकी उत्पादों में संतरे, धनिया, मसाले, औषधीय और सुगंधित पौधों के उत्पादन में भी मध्य प्रदेश का पहला स्थान है।
इसी तरह दुग्ध उत्पादन और गोपालन को लेकर भी सरकार काम कर रही है। गोशालाओं को चारा के लिए 40 रुपये तक अनुदान देने का प्रविधान किया गया है। वहीं, दुग्ध उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति लीटर पांच रुपये प्रोत्साहन राशि देने की व्यवस्था की गई है। दुग्ध उत्पादन 20 प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य है। इसके लिए नस्ल सुधार का कार्यक्रम छेड़ा गया है। वहीं, पशुओं की टैगिंग भी की जा रही है। सहकारी समितियों का क्षेत्र विस्तार किया जा रहा है, तो संयंत्रों को आधुनिक बनाने की पहल भी की गई है।
बासमती को जीआई टैग दिलाने का प्रयास
इधर, बासमती धान को बासमती की पहचान दिलाने के लिए जीआइ टैग दिलाने के प्रयास लंबे समय से किए जा रहे हैं। इसको लेकर कानूनी लड़ चल रही है। जीआइ टैग नहीं मिलने के कारण व्यापारी प्रदेश से बासमती सामान्य धान की तरह लेकर जाते हैं, तो बासमती के नाम से बेचते हैं। इसके कारण किसानों को जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है।
प्राकृतिक खेती पर जोर
प्रदेश में रासायनिक उर्वरकों के अति उपयोग के कारण भूमि की मृदा शक्ति प्रभावित हो रही है। भविष्य के खतरे को भांपते हुए सरकार का जोर इस बात पर है कि किसान प्राकृतिक खेती करें, ताकि भूमि की मृदा शक्ति बनी रहे। इसके साथ ही पराली (नरवाई) जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए एक ओर जहां कड़ाई की जा रही है तो दूसरी ओर नरवाई को भूमि में ही मिलने के उपकरणों पर अनुदान दिया जा रहा है। कस्टम हायरिंग सेंटर से भी इसे जोड़ा गया है।
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