पॉश एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राजनीतिक दलों को दायरे में लाने की याचिका पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया. इसमें मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम यानी पॉश (PoSH) एक्ट के दायरे में लाया जाए. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस मामले में वो पहले चुनाव आयोग से संपर्क करें. चुनाव आयोग इसके लिए संवैधानिक संस्था है, जो राजनीतिक दलों के कामकाज को नियंत्रित करती है और उनकी गतिविधियों को नजर रखती है.

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल अपनी शिकायत लेकर चुनाव आयोग जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि चुनाव आयोग इस मामले में उचित कार्रवाई नहीं करता है, तो याचिकाकर्ता किसी उपयुक्त न्यायिक मंच का रुख कर सकता है. अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को सक्षम प्राधिकरण से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी जाती है. यदि याचिकाकर्ता की शिकायत का समाधान नहीं होता है, तो वह कानूनी प्रक्रिया के तहत कोर्ट आ सकते हैं’

प्रमुख राजनीतिक दलों बनें प्रतिवादी
याचिका में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों को प्रतिवादी बनाया गया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन दलों ने पॉश एक्ट का पालन नहीं किया है, खास तौर पर आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) के गठन में.

पॉश अधिनियम का पालन जरूरी
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि सभी राजनीतिक दल पॉश एक्ट की धारा 4 के तहत ICC का गठन करें और यह घोषणा करें कि दलों में काम करने वाले व्यक्ति अधिनियम की धारा 2(एफ) के तहत कर्मचारी की परिभाषा में आते हैं. याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी राजनीतिक दल को पंजीकरण और मान्यता तभी दी जाए जब वह पॉश अधिनियम का पालन करता हो.

चुनाव आयोग के पास जाएंगे याचिकाकर्ता
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद अब यह मामला चुनाव आयोग के समक्ष जाएगा.हालांकि अगर आयोग उचित कार्रवाई नहीं करता है, तो याचिकाकर्ता को कानूनी मंच का सहारा लेने की छूट दी गई है. यह मामला राजनीतिक दलों में महिलाओं की सुरक्षा और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिए आवश्यक संरचनाओं की कमी को भी उजागर करता है.